पुलिस अगर जरा सा भी सजग और संवेदनशील होती तो बहराइच जिले के महराजगंज की हिंसा टाली जा सकती थी। सांप्रदायिक दृष्टि से अति संवेदनशील इस कस्बे में हर त्योहार पर पीएसी की तैनाती होती रही है, लेकिन इस बार पुलिस और पीएसी के जो जवान विवाद के दौरान मौके पर थे, उनका रवैया भी ढीला था। यही नहीं जब डीजे पर गाना बजाने को लेकर विरोध शुरू हुआ तो पुलिस बल के जवान हस्तक्षेप करने के बजाय इधर-उधर कतराते रहे। परिणाम बड़ी हिंसा के रूप में सामने आया।
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लगभग पांच हजार आबादी का महराजगंज कस्बा मुस्लिम बाहुल्य है। यहां लगभग 70 प्रतिशथ आबादी अल्पसंख्यक समुदाय की है। तहसील मुख्यालय से सटा यह कस्बा सांप्रदायिक दृष्टि से संवेदनशील माना जाता है। यही कारण है कि यहां पिछले 10-12 वर्षों से पुलिस बल के साथ पीएसी के जवान धार्मिक आयोजनों में निगरानी करते रहे हैं, लेकिन इस बार महज 10-12 पुलिस कर्मी और इतने ही पीएसी के जवान पूरे कस्बे में विसर्जन यात्रा के दौरान बिखरे हुए थे। ऐसे में जब विसर्जन जुलूस कस्बे में पहुंचा और डीजे पर बज रहे गाने का मुस्लिम समुदाय ने विरोध किया और हिंदू पक्ष ने उनके विरोध को नाजायज करार दिया।
इस बात को लेकर जब बहस और विवाद शुरू हुआ तो सुरक्षा बल मौके पर पर्याप्त संख्या में मौजूद नहीं था। अल्पसंख्यक समुदाय के कुछ युवकों ने यात्रा में शामिल म्यूजिक सिस्टम की केबल नोचने का प्रयास किया, जिससे विवाद बढ़ गया। इसी बीच सलमान के घर की छत पर चढ़कर रामगोपाल मिश्र इस्लामिक झंडा उतारने लगा। ऐसे में मनबढ़ मुस्लिम युवकों ने उसे घर के अंदर खींच लिया और बर्बरता की। पुलिस ने उसे बचाने की जगह बाहर आक्रोशित भीड़ पर लाठीचार्ज कर दिया। इससे भीड़ और उग्र हो गई। यह देख क्षेत्राधिकारी और एसओ स्थिति को नियंत्रण में करने एवं घर में कैद घायल रामगोपाल को बाहर लाकर अस्पताल पहुंचाने के बजाय मौके से खिसक गए।