Balrampur News: बलरामपुर में मूकबधिर युवती से दुष्कर्म में लापरवाही पर पांच पुलिसकर्मी लाइन हाजिर

गोंडा रोड पर सोमवार देर शाम मामा के घर से लौट रही मूकबधिर युवती से दुष्कर्म की वारदात ने कोतवाली देहात पुलिस की गश्त व्यवस्था की पोल खोल दी है। संवेदनशील रूट पर तैनात पुलिसकर्मी ड्यूटी पर होते हुए भी सतर्क नहीं मिले। जांच में लापरवाही साबित होने पर एक उपनिरीक्षक, एक मुख्य आरक्षी, दो आरक्षी और चालक होमगार्ड को एसपी ने लाइन हाजिर कर दिया।







सोमवार शाम करीब छह बजे पीड़िता मामा के घर से अपने घर के लिए निकली। वह पैदल सड़क किनारे बढ़ रही थी। रास्ते में अंकुर वर्मा अपने साथी हर्षित पांडेय के साथ बाइक पर आया। उसने युवती को अपनी बाइक पर ही बैठा लिया और सुनसान रूट पर ले जाकर उसके साथ दुष्कर्म किया।मामले में भले ही पुलिस ने दोनों आरोपियों को मंगलवार देर रात मुठभेड़ में गिरफ्तार कर लिया, लेकिन सुरक्षा पर सवाल उठ रहे थे। जांच में स्पष्ट हुआ कि घटना के समय रूट पर तैनात पीआरबी कर्मी, हल्का प्रभारी और बीट कांस्टेबल मौजूद थे, लेकिन सतर्कता नहीं बरती गई। इस लापरवाही पर उप निरीक्षक शिव कैलाश, मुख्य आरक्षी कमलेश प्रसाद, आरक्षी रजनीश कुमार, बीट आरक्षी सतीश चौरसिया और चालक होमगार्ड श्रीराम गुप्ता को लाइन हाजिर कर दिया गया।
पड़ताल में मिला सुनसान रूट, गश्त का पता ही नहीं


वारदात वाले रूट की पड़ताल में सामने आया कि गोंडा रोड पर करीब तीन किलोमीटर का इलाका शाम ढलते ही वीरान हो जाता है। दोनों तरफ खेत और बीच-बीच में झाड़ियां, जिनके बाद सिर्फ ट्रकों की आवाज सुनाई देती है। सड़क किनारे कुछ ठेलों की रोशनी छोड़ दें, तो बाकी इलाका अंधेरे में डूबा रहता है। स्थानीय दुकानदारों का कहना है कि रात नौ-दस बजे के बाद कभी-कभार ही पुलिसकर्मी दिखते हैं। अक्सर पूरी रात कोई गश्त नहीं होती। हादसा या झगड़ा हो जाए तो मदद मिलने में देर लगती है।
''लाइन हाजिर'' कोई वैधानिक दंड नहीं
लाइन हाजिर कोई वैधानिक दंड नहीं है। यह महज एक प्रशासनिक आदेश है। इसका उद्देश्य संबंधित पुलिसकर्मी को फील्ड ड्यूटी से हटाकर रिजर्व लाइन में रखना है, ताकि उसके आचरण, कार्यप्रणाली या शिकायत की जांच निर्बाध रूप से हो सके। पुलिस सेवा नियमों में दंड की परिभाषित श्रेणियां अलग हैं। चेतावनी, वेतन वृद्धि रोकना, पदावनति या निलंबन, लेकिन लाइन हाजिर इनमें शामिल नहीं है। यह अधिकतर एक अस्थायी अनुशासनात्मक उपाय है, जो वरिष्ठ अधिकारी के विवेक पर निर्भर करता है।
-राजेश पांडेय, नोडल अधिकारी यूपीडा/सेवानिवृत्त पुलिस महानिरीक्षक

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