Sunny Sanskari ki Tulsi Kumari : वरुण धवन और जान्हवी कपूर की फिल्म ‘सनी संस्कारी की तुलसी कुमारी’ 2 अक्टूबर को बड़े पर्दे पर रिलीज हो गई है. इस फिल्म में सान्या मल्होत्रा और रोहित सराफ भी अहम रोल में हैं. आइए आपको बताते हैं इसका रिव्यू.
धर्मा प्रोडक्शन की इस फिल्म का निर्देशन शशांक खेतान ने किया है . शशांक खेतान अपनी फिल्मों ‘हम्प्टी शर्मा की दुल्हनिया’ और ‘बद्रीनाथ की दुल्हनिया’ जैसी फिल्मों के लिए जाने जाते हैं और बॉलीवुड में रोमांटिक फिल्मों का दौर लौट रहा है, अगर इस फिल्म को पॉजिटिव माउथ रिव्यूज मिलते हैं तो फिल्म हिट हो सकती है. हालांकि एडवांस बुकिंग में अभी तक फिल्म को बहुत अच्छा रिस्पॉन्स नहीं मिल रहा है.
क्या है फिल्म की कहानी?
कहानी बाहुबली फिल्म के प्रशंसक सनी संस्कारी (वरूण धवन) की है. सराफा व्यवसायी का बेटा सनी अपनी प्रेमिका अनन्या (सान्या मल्होत्रा) को बाहुबली के अंदाज में शादी के लिए प्रपोज करता है, लेकिन वह इनकार कर देती है. अपनी मम्मी के कहने पर अमीर व्यवसायी विक्रम (रोहित सराफ) के साथ शादी करने को तैयार हो जाती है .विक्रम भी स्कूल टीचर तुलसी कुमारी (जाह्नवी कपूर) के साथ प्रेम संबंध में होता है. मध्यवर्गीय परिवार से आने वाली तुलसी के माता पिता में अलगाव की वजह से विक्रम की मां और बड़े भाई परम (अक्षय ओबेरॉय) उसे पसंद नहीं करते.
विक्रम और अनन्या की शादी तीन सप्ताह बाद होनी है. वह अपने प्यार को वापस पाने के लिए सनी शादी को तुड़वाने की योजना बनाता है. वह अपने साथ तुलसी को लेकर शादी के आयोजन स्थल उदयपुर पहुंचता है. तुलसी को लगता है कि बोरिंग होने की वजह से विक्रम ने उसे छोड़ दिया. अब पांच दिन शादी के बचे हैं. यहां पर तुलसी और सनी करीब आएंगे या अपने प्यार को पाएंगे कहानी इस संबंध में हैं.
एक्टर्स की एक्टिंग
कलाकारों की बात करें तो वरूण धवन चिरपरिचत अंदाज में हैं. लगता है कि वह पुराने रोमांटिक किरदारों से निकल नहीं पाए हैं. उनका पात्र जिस प्रकार की शायरी करता है हंसाती कम निम्नस्तरीय लगती है. विक्रम और तुलसी की प्रेम कहानी कहीं से विश्वसनीय नहीं लगती. तुलसी बनीं जाह्नवी कपूर इमोशन को व्यक्त करने में कमजोर लगती है. सान्या मल्होत्रा बेहतरीन डांसर होने के साथ मंझी अभिनेत्री हैं. वह कम संवाद के बावजूद अपने भावों से समुचित तरीके से व्यक्त कर देती हैं.विक्रम बने रोहित सराफ ने अपने किरदार को जीने की कोशिश की है.
कैसी है मूवी ?
स्क्रिप्ट की सीमा और कमजोरी ही उनकी हद बन गई है. वे उससे निकल नहीं पाते .अक्षय ओबेरॉय को इस प्रकार की भूमिकाओं में अपनी प्रतिभा को बर्बाद नहीं करना चाहिए. फिल्म का आकर्षण मनीष पॉल हैं. वह दिए गए दृश्यों में अपनी दमदार मौजूदगी दर्ज कराते हैं. सहयोगी भूमिका में आए कलाकारों को स्थापित करना लेखक और निर्देशक ने जरूरी नहीं समझा. तनिष्क बागची और रवि पवार का रीक्रिऐट वर्जन ‘बिजुरिया’ और ए पीएस का ‘पनवाड़ी’ कुछ हद तक यादगार हैं, लेकिन बाकी गीत संगीत प्रभावशाली नहीं बन पाए हैं.
