Tere Ishq Mein : धनुष और कृति सनन की फिल्म तेरे इश्क में 28 नवंबर को सिनेमाघरों में रिलीज़ हो गई है आनंद एल राय द्वारा निर्देशित इस मूवी को रांझणा से भी जोड़ा जा रहा है . आपको ये मूवी थियेटर में देखना चाहिए या नहीं तो यह रिव्यू जान लीजिए .
कहानी
शंकर गुरुक्कल (धनुष) के इर्द-गिर्द घूमती है, जो DUSU (दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ) का अध्यक्ष है और अपने हिंसक तथा दबंग रवैये के लिए कॉलेज में मशहूर है. मुक्ति (कृति सेनन) एक रिसर्च स्कॉलर है, जो यह साबित करना चाहती है कि हिंसक व्यक्ति भी बदल सकता है. मुक्ति शंकर को अपना थीसिस सब्जेक्ट बना लेती है. शुरू में शंकर तैयार नहीं होता, मगर धीरे-धीरे वह मुक्ति से प्यार करने लगता है और अपने स्वभाव में बदलाव लाता है. मुक्ति पीएचडी पूरी कर लेती है, लेकिन शंकर को एहसास होता है कि उसके प्यार को वैसी जगह नहीं मिली. फिर शुरू होती है सात साल बाद की कहानी....यही हिस्सा फिल्म को इमोशनल और गहरा बनाता है.
जानें कैसी है फिल्म?
फिल्म की शुरुआत शानदार है. शंकर और मुक्ति की केमिस्ट्री एकदम ताजी-ताजी मोहब्बत जैसी लगती है. वो हल्के-फुल्के पल, वो नॉस्टैल्जिया वाला फील… लगता है जैसे आप खुद ही उनके साथ चाय की चुस्की ले रहे हों. वो ट्रेलर वाला सीन याद है, जब शंकर ने मुक्ति के हाथ से खुद को धमाकेदार थप्पड़ मारा था? हां! वो वाला सीन फिल्म के पावरफुल मोमेंट्स में से एक है, जो आपको कुर्सी से बांधे रखता है. लेकिन, कहानी आगे बढ़ती है, तो मामला भी बदल जाता है. प्रेम कहानी की जगह जुनून की आग दिखती है. शंकर जब खुद को बर्बाद करने पर उतरता है, तब आनंद एल राय साहब स्क्रीन पर विस्फोट कर देते हैं. प्यार, धोखा, और बदला—ये सब मिलकर एक ऐसा दर्दनाक चक्रव्यूह बनाते हैं, लेकिन इस चक्रव्यूह में दर्शक कई बार गूम भी हो जाता है. एक तरफा प्यार की कॉन्सेप्ट को छोड़कर इस फिल्म में ‘रांझणा’ जैसा कुछ भी नहीं है. लेखक हिमांशु शर्मा और नीरज यादव ने आनंद एल राय के साथ मिलकर एक अच्छी फिल्म हमारे सामने पेश की है.
फिल्म देखे या नहीं ?
अगर आपको जुनून से भरी मोहब्बत, दिल को छू लेने वाले भाव और कच्चे किरदारों की सच्ची कहानी देखना पसंद है, तो ‘तेरे इश्क में’ जरूर देखी जा सकती है. फिल्म में कमियां जरूर हैं, लेकिन धनुष का अभिनय इस कहानी को देखने लायक बना देता है. वो हर दृश्य में अपनी आंखों और हावभाव से ऐसा एहसास जगाते हैं, जिसे बोलकर नहीं, महसूस करके समझा जाता है. अगर आप पहले की फिल्म ‘रांझणा’ के चाहने वाले रहे हैं, तो यहां भी वही एहसास दोबारा जग सकता है. खासकर जब जीशान अय्यूब और धनुष एक साथ पर्दे पर आते हैं, तो उनकी समझ, डायलॉग और दोस्ती आपको बनारस की गलियों में ले जाती है. उनकी मौजूदगी छोटी है, लेकिन फिल्म की रूह बन जाती है.
‘रांझणा ’ और ‘तेरे इश्क में’
‘रांझणा’ की बात करे तो वो एकदम अधूरी लेकिन सीधी प्रेम कहानी थी. कुंदन का प्यार एकदम भोला-भाला था, एकदम दिल का मामला, जो सीधे कलेजे में उतरता था. वो सिर्फ एकतरफा आशिकी थी, जिसमें इमोशन की गहराई थी. लेकिन ‘तेरे इश्क में’ थोड़ी पेचीदा है. यहां भी एक तरफा प्यार है, लेकिन शुरुआत में ये आशिकी का मामला नहीं, बल्कि साइंस का एक्सपेरिमेंट है! शंकर का प्यार सिर्फ प्यार नहीं, बल्कि जुनून की आग है. आनंद एल राय ने इस बार कहानी को सीधा न रखकर खूब घुमाया है, जिसमें बदला और दिमाग का खेल ज्यादा है. रांझणा अगर सीधा-सादा इश्क था, तो ‘तेरे इश्क में’ कॉम्प्लिकेटेड मोहब्बत है.
कुल मिलाकर, ‘तेरे इश्क में’ एक सशक्त रोमांटिक ड्रामा है, जिसमें जुनून की गहराई है. इसे देखकर आप चुपचाप नहीं बैठ पाएंगे, बल्कि दोस्तों से बहस करेंगे. इसे देखिए, इस पर सोचिए और हां… शायद इस इश्क की आग में थोड़ा सा जल भी जाइए!
